पटना/बिहार: भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री में इन दिनों रीमेक का चलन सिर चढ़कर बोल रहा है। खेसारी लाल यादव, पवन सिंह, अरविंद अकेला ‘कल्लू’ जैसे टॉप गायक अब लगातार बॉलीवुड के पुराने हिट गानों को भोजपुरी अंदाज़ में रीक्रिएट कर रहे हैं।
यह ट्रेंड दर्शकों को भले ही लुभा रहा हो, लेकिन एक समय अपनी मौलिकता, लोक संस्कृति और मिट्टी की खुशबू के लिए पहचानी जाती थी। लेकिन आजकल हर गली-मोहल्ले में बजने वाले भोजपुरी गानों की धुनों में कुछ दोहराव सा महसूस हो रहा है। वजह? इंडस्ट्री पर छाई रीमेक की आंधी, जिसने ओरिजिनल कंटेंट को लगभग हाशिए पर पहुंचा दिया है।
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भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री
कभी शारदा सिन्हा की मधुर आवाज़ में छठ गीत गूंजते थे, तो कभी मनोज तिवारी और कल्पना जैसे गायकों के गानों में गाँव-गिरांव की सोंधी महक सुनाई देती थी। अब वही इंडस्ट्री पुराने सुपरहिट गानों को नए बीट्स और वल्गर वीडियो के साथ परोस रही है।
पवन सिंह ,खेसारी लाल यादव , नीलकमल सिंह, अरविंद अकेला कल्लू शिल्पी राज सहित कई अन्य कलाकार भी इस रीमेक दौड़ में पीछे नहीं हैं।
रीमेक बना शॉर्टकट का ज़रिया
संगीतकारों और निर्माताओं के लिए रीमेक एक आसान रास्ता बन गया है—ना नया बोल लिखना, ना नई धुन बनानी। बस पुराने हिट गाने को EDM के तड़के के साथ पेश कर दो और यूट्यूब व्यूज की गारंटी मिल जाती है।
इन गानों को यूट्यूब और सोशल मीडिया पर करोड़ों व्यूज़ मिल रहे हैं। इससे यह ट्रेंड म्यूजिक प्रोड्यूसर्स और कलाकारों के लिए मुनाफे का सौदा बन गया है। लेकिन संगीत समीक्षक और संस्कृति प्रेमी इससे चिंतित हैं। उनका मानना है कि इस रीमेक ट्रेंड के चलते भोजपुरी संगीत की मौलिकता और लोक-संस्कृति की जड़ें कमजोर हो रही हैं।
कई वरिष्ठ गायकों ने इस ट्रेंड पर नाराजगी जताई है। लोकप्रिय गायक अभिनेता निरहुआ ने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा, “हमारी माटी की खुशबू खो रही है। जो नई पीढ़ी सुन रही है, वो असली भोजपुरी नहीं है।”
वरिष्ठ संगीत समीक्षक डॉ. रमाकांत तिवारी कहते हैं,
“भोजपुरी संगीत की आत्मा उसकी मौलिकता में है। बार-बार हिंदी गानों की नकल से न सिर्फ रचनात्मकता घट रही है, बल्कि हमारी लोकसंस्कृति भी कमजोर हो रही है।”
लोकगायक मालती देवी का भी मानना है कि मूल गीतों को बढ़ावा देना ज़रूरी है। “हमारे पास इतनी समृद्ध विरासत है—कजरी, बिरहा, फगुआ—उसे आधुनिक रंग देकर भी आज के युवाओं से जोड़ा जा सकता है,” उन्होंने कहा।
कभी हिंदी फिल्में भोजपुरी लोकधुनों से प्रेरणा लेती थीं, पर अब भोजपुरी म्यूजिक खुद बॉलीवुड के पुराने सुरों की छाया बनता जा रहा है। सवाल यह है कि क्या यह चलन भोजपुरी संगीत की रचनात्मक स्वतंत्रता को निगल जाएगा या भोजपुरी इंडस्ट्री फिर से अपनी जड़ों की ओर लौटेगी? क्या कोई नया कलाकार आएगा जो अपने गानों से समाज को आईना दिखाएगा और संस्कृति को संजोएगा?
जब तक यह नहीं होता, तब तक यही सवाल गूंजता रहेगा — “भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री में कहां है असली सुर?”