मुंबई: बॉलीवुड में नेपोटिज्म यानी भाई-भतीजावाद पर लंबे समय से बहस होती रही है। अक्सर यह कहा जाता है कि फिल्मी बैकग्राउंड से आने वाले कलाकारों को इंडस्ट्री में आसानी से काम मिल जाता है। लेकिन यह हमेशा सफलता की गारंटी नहीं होती। ऐसे कई उदाहरण हैं जब मशहूर सितारों के बेटे-बेटियां फिल्मों में कदम तो रखते हैं, लेकिन दर्शकों का दिल जीतने में नाकाम रहते हैं। ऐसे ही एक उदाहरण हैं अभिनेता और नेता राज बब्बर के बच्चे – जूही बब्बर, आर्य बब्बर और प्रतीक बब्बर।
जूही बब्बर: प्रतिभा से अधिक पहचान बनी पिता के नाम से
राज बब्बर और नादिरा बब्बर की बेटी जूही बब्बर ने बॉलीवुड और टेलीविजन में अपनी किस्मत आजमाई। ‘कश आप हमारे होते’, ‘रिफ्लेक्शन’, ‘अय्यारी’ जैसी कुछ फिल्मों में नजर आईं, लेकिन कोई खास पहचान नहीं बना सकीं। फिल्मों में उनका प्रदर्शन फीका रहा और दर्शकों के बीच उनकी पकड़ कभी नहीं बन पाई। वे थिएटर में सक्रिय रहीं लेकिन बॉलीवुड में सफल होने का सपना अधूरा रह गया।
आर्य बब्बर: कई कोशिशों के बावजूद नहीं बन पाए दर्शकों के पसंदीदा
2002 में फिल्म ‘अब के बरस’ से करियर की शुरुआत करने वाले आर्य बब्बर भी अपने पिता राज बब्बर की तरह एक मजबूत अभिनेता बनने का सपना लेकर आए थे। लेकिन ‘जट्स इन गोलमाल’, ‘नॉटी जट’, ‘पापी – एक सत्य कथा’ जैसी फिल्मों में काम करने के बावजूद उन्हें बड़ी सफलता नहीं मिल सकी। लगातार फ्लॉप फिल्मों के चलते वे इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान नहीं बना पाए।
प्रतीक बब्बर: प्रतिभाशाली लेकिन सीमित दायरे में सिमटी सफलता
राज बब्बर और दिवंगत अभिनेत्री स्मिता पाटिल के बेटे प्रतीक बब्बर ने ‘जाने तू या जाने ना’, ‘धोबी घाट’, ‘मुल्क’, ‘बागी 2’, ‘छिछोरे’ और ‘ब्रह्मास्त्र’ जैसी फिल्मों में काम किया। उनके अभिनय की सराहना जरूर हुई, लेकिन वे ज्यादातर सहायक भूमिकाओं तक सीमित रहे। स्मिता पाटिल जैसे अभिनय कौशल की विरासत होने के बावजूद प्रतीक को वह मुकाम नहीं मिल सका जिसकी उनसे अपेक्षा थी।
राज बब्बर जैसे प्रतिष्ठित अभिनेता के परिवार से होने के बावजूद उनके बच्चों का फिल्मी सफर इस बात की मिसाल है कि फिल्मी बैकग्राउंड और स्टारडम विरासत में मिल सकता है, लेकिन असली सफलता केवल प्रतिभा, मेहनत और दर्शकों से जुड़ाव से ही मिलती है। नेपोटिज्म की बहस के बीच यह स्पष्ट होता जा रहा है कि अब दर्शक केवल नाम नहीं, काम देखते हैं।